Thursday, January 9, 2014

अफज़ल माफ़ नहीं होगा

अफज़ल माफ़ नहीं होगा 

संसद पर हमले की पीड़ा झेल रहा क्यूँ हिंदुस्तान |
वीर शहीदों के घावो से खेल रहा क्यूँ हिंदुस्तान ||
निर्दोशो का लहू बहके आतंकी संगीनों पर |
नाग करोरो नाच रहे है पाकिस्तानी बीनो पर ||

घायल संसद स्वाभिमान को फँसी की तैय्यारी है | 
घायल संसद स्वाभिमान को फँसी की तैय्यारी है |
ये फंदे कैसे दोल रहे है अब अफज़ल की बारी है || 

आस्तीन में साप पलना भारत को स्वीकार नहीं |
और हिन्दुस्तान में गद्दारों को जीने का अधिकार नहीं ||

( कटते हुए वृक्ष से कुल्हाड़ी ने कहा हे वृक्ष तुम्हारी तो नियति ही काटना
है फिर जब में तुम्हे काट रही हूँ तब तुम्हे इतना दुःख क्यूँ हो रहा है इसपर
वृक्ष बोला की हे कुल्हाड़ी मेरे ही वंशा का अंश जब मेरे ही विध्वंसा का कारन
बना है ये मेरे वंशा का जो हत्था तुम्हारा साथ दे रहा है अगर ये तुम्हारा साथ
नहीं देता तो तुम मुझको काट नहीं पाती |
मेरे देश की दुर्दशा भी शायद सीए हो गयी है इसीलिए कटता जा रहा है )

आस्तीन में साप पलना भारत को स्वीकार नहीं |
और हिन्दुस्तान में गद्दारों को जीने का अधिकार नहीं ||

खून के छींटे गीले है जब संसद के गलियारों में |
सिद्ध फैसला फँसी का क्यूँ भटक रहा दरबारों में ??

कैसा गाफिल देश हमारा अफज़ल अभी भी जिंदा है ?
कैसा गाफिल देश हमारा अफज़ल अभी भी जिंदा है ?
मृत्युपरांत के शौर्य चक्र भी घायल है शर्मिंदा है ||
वे विधवाए विस्मित क्रोधित जिनके कान्त हुए बलिदान ||
लौटा दिए प्रतीक शौर्य के शर्मसार है हिन्दुस्तान ||
लौटा दिए प्रतीक शौर्य के शर्मसार है हिन्दुस्तान ||

उठो सिंह सपूतों फिर से सारा हिन्दुस्तान उठे |
और सिंघासन दिल्ली का डोले ऐसा कदम महा उठे ||
और फिर से दिल्ली के चौराहों पर वन्दे मातरम गाना है |
हुंकार हमारी अफज़ल को अब फँसी पर लटकाना है ||

याद करो जलियावाला जब मौसम आदमखोर हुआ |
इन्कलाब के नारों में फिर बलिदानों शोर हुआ ||
कौन सज़ा देता दायर को ?? कौन सज़ा देता दायर को ??
वो शाशन ही हत्यारा था !! और उधम सिंह ने उस दायर को लन्दन जाकर मारा था ||

फिर उस देश के स्वाभिमान को अफज़ल ने ललकारा है |
उदंड अधम को दंड मिलेगा ये संकल्प हमारा है ||
और ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा हो तो तक्षक नाग भी हिल जायेगा |
और सौ करोर का बाजे शंख तो मृत्युदंड भी मिल जायेगा ||

पांचजन्य जब गूंज रहा अब नितरज्निकर्तारों में |
सिद्ध फैसला फँसी का क्यूँ भटक रहा दरबारों में ??
सत्ता का इन्साफ तराजू मध्य हवा में दोल रहा है |
गद्दारों के मंसूबो से लहू हमारा खौल रहा है ||

(कथा अपने सुनी होगी की शुशिपाल की ९९ गालियाँ माफ़ कीथी श्री कृष्णा जी ने
लेकिन सौवी गाली पर शिशुपाल वध हुआ था )

चक्र सुदर्शन उठा कृष्णा को शिशुपाल वध करना होगा !!
ये सौवी गाली है अफज़ल अबतो तुझको मरना होगा !!
अब सरे आम फांसी देदो वरना इन्साफ नहीं होगा !
और बलिदान हमारा चाहे लो पर अफज़ल माफ़ नहीं होगा !!

मारो कुत्ते की मौत उन्हें जो भारत माँ पे घात करे |
और पहले उनको फँसी देदो जो माफ़ी की बात करे ||
लोकतंत्र के उन् गुंडों की गिनती हो गद्दारों में !
सिद्ध फैसला फँसी का क्यूँ भटक रहा दरबारों में ??

( एक में दिल्ली में इस कविता का पाठ कर रहा था तब मुझको
कहा गया की भाई नए नए कवी बने हो ऐसे कविताये मत पढो फतवे
जारी हो जायेंगे उन् महाशय को में आखिरी पंक्तियों से जवाब देता हूँ )

में आक्रोश का गायक हूँ अभिनन्दन की चाह नहीं !!
और रक्त तिलक का धारक हूँ मुझको चन्दन की चाह नहीं !!
दिलमे हिंदुस्तान बसा कर रखता जान हथेली पर !
इसलिए मौत के फतवों की मुझको हरगिज़ परवाह नहीं ||



http://www.youtube.com/watch?v=NiY0fn4F2UE&feature=youtube_gdata_player

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