Wednesday, November 1, 2023

Troy Opening Narration - Hindi

हर सरफ़रोश दुनिया में अपना नाम अमर करना  चाहता है , और इसलिए हम खुद से पूछते है , 
क्या हमारे कारनामे सदियों तक कहे जायेंगे , ये संसार हमारे जाने के बाद क्या हमारा नाम याद रखेंगा ! 
पुछा जायेगा के हम कोन  थे ? 
कितनी जाबाजी से लढ़ते थे ,
और किस जुनून से मोहोबत करते थे !

Wednesday, April 20, 2016

तेहतीस(३३) कोटी देवता



आपणास हे माहित आहे का ?
तेहतीस कोटी देव कोणते ?
उत्तर : बहुतेक लोकांना 'तेहतीस कोटी' चा अर्थ 'तेहतीस करोड' असाच वाटत असतो . पण मुळात संस्कृतात "कोटी" या शब्दाचा अर्थ करोड नसून 'प्रकार' असा आहे. कल्पना अशी आहे की ईश्वराने निसर्गाचे व्यवस्थापन करण्यासाठी ३३ देवांना कार्यभार सोपवले आहेत. त्यांच्यात ८ वसू, ११ रूद्र, १२ आदीत्य, १ इंद्र आणि १ प्रजापती असे पाच स्तर आहेत .
प्रत्येकाचे कार्य (खाते) भिन्न असल्याने प्रत्येकाला वेगळी कोटी (कॅटेगरी) दिलेली आहे.
अष्टवसूंची नावे - आप,धृव,सोम,धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष आणि प्रभास.
अकरा रूद्रांची नावे - मनु, मन्यु, महत, शिव, ऋतुध्वज, महीनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव आणि धृत-ध्वज.
बारा आदित्यांची नावे - अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धानू, पर्जन्य, पूषन, भग, मित्र, वरूण, वैवस्वत व विष्णू.
असे एकंदर ८+११+१२+१+१ = ३३.


Wednesday, January 21, 2015

Important Question

महाभारत में पूछे गए यक्ष प्रश्नों से हम सभी परिचित हैं। यक्षद्वारा पूछा गया एक एक प्रश्न और उस पर युधिष्ठिरद्वारा दिया गया एक एक उत्तर दोनों सोचने लायक है। आज भी ये उत्तर हमारी आंखें खोलने के लिए जरूरी है।यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा ,' इस विश्व की सबसे ड़ी विस्मय की बात कौन सी है ?(What is the most surprising thing in this world? ) युधिष्ठिर का उत्तर था , ' रोजकितने ही प्राणियों की हमारे सामने मौत हो जाती है। फिर भी बचे हुए लोग अपनी मौत को भूल जाते हैं। यहीमानकर चलते हैं कि वे अमर हैं। इससे ड़ी विस्मय की बात क्या हो सकती है 
(Every day we see death of Living being , still we forget about death assuming that we are eternal. What else can be more surprising thing in this world ?)

खुश रहना ...

जिंदगी के एक के पल की कीमत उस इन्सान से पूछो जो बीमारी से जूझ रहा है और उसे पता है मृत्यु अटल है ... इस जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यही है के प्रलय निश्चित है फिर भी ऐसा लगता है के जीवन अनंत है :) 

Thursday, January 15, 2015

वेदों के चार महावाक्य...

वेदों के चार महावाक्य...
१) प्रज्ञानं ब्रह्म - (ऐतरेय उपनिषद) - ऋगवेद
प्रज्ञा रूप (उपाधिवाला) आत्मा ब्रह्म है...
[ Consciousness is Brahman... Aitareya Upnishad... Rigveda...]
२) अहम् ब्रह्मास्मि - (ब्रिह्दारन्यक उपनिषद) - यजुर्वेद
मैं ब्रह्म हू...
[ I am Brahman... Brahadaranyak Upnishad... Yajurveda...]
३) तत्वमसि [तत त्वम असि] - (छान्दोग्य उपनिषद्) - सामवेद
वह पूर्ण ब्रह्म तू है...
[You are That... Chhandogya Upnishad... Saamveda...]
४) अयं आत्म्ब्रह्म - (मांडूक्य उपनिषद) - अथर्व-वेद
यह (सर्वानुभाव सिद्ध अपरोक्ष) आत्मा ब्रह्म है...
[Tis Self(Aatma) is Brahman... Maandukya Upnishad... Atharv-veda...]

पहला महावाक्य ऋग्वेद के ऐतरेय उपनिषद में उद्धृत किया गया है जिसे लक्षणा वाक्य भी कहा गया है। इसका संबंध ब्रह्म की चैतन्यता से है क्योंकि इसमें ब्रह्म को चैतन्य रूप में रखा गया है। दूसरा महावाक्य यजुर्वेद के वृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है। इसकी खासियत यह है कि इसमें यह जताने की कोशिश की गई है कि हम सभी ब्रह्म (अहं ब्रह्मास्मि) हैं। इसे अनुभव वाक्य भी कहते हैं और इसके मूल स्वरूप को सिर्फ अनुभव के जरिए हासिल किया जा सकता है। तीसरा महावाक्य सामवेद के छांदोग्य उपनिषद से लिया गया है। इस महावाक्य तत त्वम असि का मतलब यह है कि सिर्फ मैं ही ब्रह्म नहीं हूं आप भी ब्रह्म है बल्कि विश्व की हर वस्तु ही ब्रह्म है। इसे उपदेश वाक्य भी कहा जाता है। यह उपदेश वाक्य इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसके जरिए गुरु अपने शिष्यों में अहंकार को रोकते हैं। साथ ही वह दूसरों के प्रति आदर की भावना को भी पैदा करते हैं। चौथा महावाक्य मुंडक उपनिषद से लिया गया है। अयामात्या ब्रह्म महावाक्य के जरिए यह जताने की कोशिश हुई है कि आत्मा ही ब्रह्म है। दरअसल यह अद्वैतवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है और परम सत्य के बड़े स्वरूप की जानकारी देता है इसलिए इसे अनुसंधान वाक्य भी कहा जाता है। 

Tuesday, July 29, 2014

न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यशः । 

अर्थात मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ केवल यश दूषित होने ( अपमान )से  डरता हूँ !
- भगवान राम 

नटसम्राट - संवाद


दोन पोरिंच्या रुपाने सारं जग जेव्हा सपा सारखा उलटला , तेंव्हा रजा "लेअर" काय म्हणाला आठवतायं ...
तो म्हणाला .. हे स्वर्गास्त शक्तिनो , दया खडकाची अभेद्यता माझा मनाला ... माला हवय सामर्थ्य सहन करण्याचं फक्त सहन करण्याचं .. वयं ने आणि व्यथे ने लख्तार्लेला हा थेरडा उभा रहीला आहे दैवातानो आक्रोश करीत तुमच्या दाराशी

होतील माज्या छातीच्या सहस्त्रावदी चिडया माज्या