Friday, June 28, 2013

लता मंगेशकर का जीवन परिचय


भारत रत्न लता मंगेशकर का जीवन परिचय 

लता का परिवार
लता मंगेशकर का जन्म इंदौर, मध्यप्रदेश में सितम्बर २८, १९२९ को हुआ। लता मंगेशकर का नाम विश्व के सबसे जानेमाने लोगों में आता है। इनका जन्म संगीत से जुड़े परिवार में हुआ। इनके पिता प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे व उनकी एक अपनी थियेटर कम्पनी भी थी। उन्होंने ग्वालियर से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। दीनानाथ जी ने लताजी को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पाँच साल की थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लताजी अमान अली खान, साहिब और बाद में अमानत खान के साथ भी पढ़ीं। लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। जब १९४२ में उनके पिता की मृत्यु हुई तब वे परिवार में सबसे बड़ी थीं इसलिये परिवार की जिम्मेदारी उन्हें के ऊपर आ गई। अपने परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने १९४२ से १९४८ के बीच हिन्दी व मराठी में करीबन ८ फिल्मों में काम किया। उनके पार्श्व गायन की शुरुआत १९४२ की मराठी फिल्म "कीती हसाल" से हुई। परन्तु गाने को काट दिया गया!!

वे पतली दुबली किन्तु दृढ़ निश्चयी थीं। उनकी बहनें हमेशा उनके साथ रहतीं। मुम्बई की लोकल ट्रेनों में सफर करते हुए उन्हें आखिरकार "आप की सेवा में (४७)" पार्श्व गायिका के तौर पर ब्रेक मिल गया। अमीरबाई , शमशाद बेगम और राजकुमारी जैसी स्थापित गायिकाओं के बीच उनकी पतली आवाज़ ज्यादा सुनी नहीं जाती थी। फिर भी, प्रमुख संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने लताजी में विश्वास दिखाते हुए उन्हें मजबूर और पद्मिनी(बेदर्द तेरे प्यार को) में काम दिया जिसको थोड़ी बहुत सराहना मिली। पर उनके टेलेंट को सच्ची कामयाबी तब मिली जब १९४९ में उन्होंने तीन जबर्दस्त संगीतमय फिल्मों में गाना गाया। ये फिल्में थीं- नौशाद की "अंदाज़", शंकर-जयकिशन की "बरसात" और खेमचंद प्रकाश की "महल"। १९५० आते आते पूरी फिल्म इंडस्ट्री में लताजी की हवा चल रही थी। उनकी "हाई-पिच" व सुरीली आवाज़ ने उस समय की भारी और नाक से गाई जाने वाली आवाज़ का असर खत्म ही कर दिया था। लताजी की आँधी को गीता दत्त और कुछ हद तक शमशाद बेग़म ही झेल सकीं। आशा भोंसले भी ४० के दशक के अंत में आते आते पार्श्व गायन के क्षेत्र में उतर चुकीं थी।
आशा, मीना, लता, हृदयनाथ और ऊषा मंगेशकर
शुरुआत में लताजी की गायिकी नूरजहां की याद दिलाया करती पर जल्द ही उन्होंने अपना खुद का अंदाज़ बना लिया था। उर्दू के उच्चारण में निपुणता प्राप्त करने हेतु उन्होंने एक शिक्षक भी रख लिया! उनकी अद्भुत कामयाबी ने लताजी को फिल्मी जगत की सबसे मजबूत महिला बना दिया था। १९६० के दशक में उन्होंने प्लेबैक गायकों के रायल्टी के मुद्दे पर मोहम्मद रफी के साथ गाना छोड़ दिया। उन्होंने ५७-६२ के बीच में एस.डी.बर्मन के साथ भी गाने नहीं गाये। पर उनका दबदबा ऐसा था कि लताजी अपने रास्ते थीं और वे उनके पास वापस आये। उन्होंने ओ.पी नैय्यर को छोड़ कर लगभग सभी संगीतकारों और गायकों के साथ ढेरों गाने गाये। पर फिर भी सी.रामचंद्र और मदन मोहन के साथ उनका विशेष उल्लेख किया जाता है जिन्होंने उनकी आवाज़ को मधुरता प्रदान करी। १९६०-७० के बीच लताजी मजबूती से आगे बढ़ती गईं और इस बीच उन पर इस क्षेत्र में एकाधिकार के आरोप भी लगते रहे।


उन्होंने १९५८ की मधुमति फिल्म में "आजा रे परदेसी..." गाने के लिये फिल्म फेयर अवार्ड भी जीता। ऋषिकेष मुखर्जी की "अनुराधा" में पंडित रवि शंकर की धुनों पर गाने गाये और उन्हें काफी तारीफ़ मिली। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू लताजी के गैर फिल्मी देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों..." से अति प्रभावित हुए और उन्हें १९६९ में पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया।


सर्वोत्कृष्ट पार्श्व गायन के लिए लता जी को 4 बार फिल्मफेयर अवार्ड इन गीतों के लिए हासिल हुआ- आजा रे परदेसी (मधुमती- 58) कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद- 62) तुम्हीं मेरे मंदिर (खानदान- 65) आप मुझे अच्छे लगने लगे (जीने की राह- 69)। फिल्म उद्योग और संगीत की उच्चतम सेवा के लिए फिल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ दादा फाल्के अवार्ड 1989 से इनको सम्मानित किया गया।
इस महान गायिका लता मंगेशकर को भारत के सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से मार्च 2001 में हमारे राष्ट्रपति श्री आर.के. नारायण द्वारा अलंकृत किया गया।


७० और ८० के दशक में लताजी ने तीनजी प्रमुख संगीत निर्देशकों लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन और कल्याण जी-आनंदजी के साथ काम किया। चाहें सत्यम शिवम सुंदरम हो, शोले या फिर मुकद्दर का सिकंदर, तीनों में लताजी ही केंद्र में रहीं। १९७४ में लंदन में आयोजित लताजी के "रॉयल अल्बर्ट हॉल" कंसेर्ट से बाकि शो के लिये रास्ता पक्का हो गया। ८० के दशक के मध्य में डिस्को के जमाने में लताजी ने अचानक अपना काम काफी कम कर दिया हालांकि "राम तेरी गंगा मैली" के गाने हिट हो गये थे। दशक का अंत होते होते, उनके गाये हुए "चाँदनी" और "मैंने प्यार किया" के रोमांस भरे गाने फिर से आ गये थे। तब से लताजी ने अपने आप को बड़े व अच्छे बैनरों के साथ ही जोड़े रखा। ये बैनर रहे आर. के. फिल्म्स (हीना), राजश्री(हम आपके हैं कौन...) और यश चोपड़ा (दिलवाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे, दिल तो पागल है, वीर ज़ारा) आदि। ए.आर. रहमान जैसे नये संगीत निर्देशक के साथ भी, लताजी ने ज़ुबैदा में "सो गये हैं.." जैसे खूबसूरत गाने गाये।


आजकल, लताजी मास्टर दीनानाथ अस्पताल के कार्यों में व्यस्त हैं। वे क्रिकेट और फोटोग्राफी की शौकीन हैं। लताजी, जो आज भी अकेली हैं, अपने आप को पूरी तरह संगीत को समर्पित किया हुआ है। वे अभी भी रिकॉर्डिंग के लिये जाने से पहले कमरे के बाहर अपनी चप्पलें उतारती हैं। लता मंगेशकर जैसी शख्सियतें विरले ही जन्म लेती हैं। 



स्रोत- अंग्रेजी विकिपीडिया तथा अन्य इंटरनेटीय सजाल
आशा, मीना, लता, हृदयनाथ और ऊषा मंगेशकर
लता, आशा, ऊषा, मीना और शिवाजी गणेशन की विवाह की एक पॉर्टी के मौके पर


आइए जानें लताजी के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्यों को :

1) लताजी के लिए गाना पूजा के समान है। रिकॉर्डिंग के समय वे हमेशा नंगे पैर ही गाती हैं।


2) उनके पिताजी द्वारा दिया गया तम्बूरा उन्होंने अब तक संभालकर रखा है।


3) लताजी को फोटोग्राफी का बेहद शौक है। विदेशों में उनके द्वारा उतारे गए छायाचित्रों की प्रदर्शनी भी लग चुकी हैं।


4) खेलों में उन्हें क्रिकेट का बेहद शौक है। भारत के किसी बड़े मैच के दिन वे सारे काम छोड़ मैच देखना पसंद करती हैं।


5) कागज पर कुछ भी लिखने के पूर्व वे 'श्रीकृष्ण' लिखती हैं।


6) यह बात कुछ अजीब लग सकती है, लेकिन सच है। हिट गीत 'आएगा आने वाला' के लिए उन्हें 22 रीटेक देने पड़े थे।


7) लता मंगेशकर का पसंदीदा खाना कोल्हापुरी मटन और भुनी हुई मछली है।


8) चेखव, टॉलस्टॉय, खलील जिब्रान का साहित्य उन्हें पसंद है। वे ज्ञानेश्वरी और गीता भी पसंद करती हैं।


9) कुंदनलाल सहगल और नूरजहाँ उनके पसंदीदा गायक-गायिका हैं। शास्त्रीय गायक-गायिकाओं में लताजी  को पंडित रविशंकर, जसराज, भीमसेन, बड़े गुलाम अली खान और अली अकबर खान पसंद हैं।


10) गुरुदत्त, सत्यजित रे, यश चोपड़ा और बिमल रॉय की फिल्में उन्हें पसंद हैं।

11) त्योहारों में उन्हें दीपावली बेहद पसंद है।


12) भारतीय इतिहास और संस्कृति में उन्हें कृष्ण, मीरा, विवेकानंद और अरबिंदों बेहद पसंद हैं।


13) पड़ोसन, गॉन विद द विंड और टाइटेनिक लताजी की पसंदीदा फिल्में हैं।


14) दूसरों पर तुरंत विश्वास कर लेने की अपनी आदत को वे अपनी कमजोरी मानती हैं।


15) स्टेज पर गाते हुए उन्हें पहली बार 25 रुपए की दाद मिली थी, जिसे वे अपनी पहली कमाई मानती है। अभिनेत्री के रूप में उन्हें पहली बार 300 रुपए मिले थे।


16) उस्ताद अमान खां भिंडी बाजार वाले और पंडित नरेन्द्र शर्मा को वे संगीत में अपना गुरु मानती है। उनके आध्यात्मिक गुरु थे श्रीकृष्ण शर्मा।


17) महाशिवरात्रि, सावन सोमवार के अलावा वे गुरुवार को व्रत रखती हैं।


18) लताजी  ने अपना पहला फिल्मी गीत मराठी फिल्म 'किती हंसाल' (1942) में गाया, लेकिन किसी कारणवश इस गीत को फिल्म में शामिल नहीं किया गया। मराठी फिल्म 'पहिली मंगळागौर' (1942) में उनकी आवाज पहली बार सुनाई दी। हिन्दी फिल्म 'आपकी सेवा में' (1947) लताजी ने पहली बार गया। गीत के बोल थे- पा लागूं कर जोरी रे।


19) लताजी ने पहली बार पार्श्व गायन नायिका मुनव्वर सुल्ताना के लिए किया था।


20) लताजी ने अंग्रेजी, असमिया, बांग्ला, ब्रजभाषा, डोगरी, भोजपुरी, कोंकणी, कन्नड़, मगधी, मैथिली, मणिपुरी, मलयालम, हिंदी, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंहली आदि भाषाओं में गीत गाए हैं।

21) वे मराठी भाषी हैं, परन्तु वे हिन्दी, बांग्ला, तमिल, संस्कृत, गुजराती और पंजाबी भाषा में बतिया लेती हैं।


22) बतौर अभिनेत्री लताजी ने कई हिन्दी व मराठी फिल्मों में काम मिया है। हिन्दी में वे बड़ी माँ, जीवन यात्रा, सुभद्रा, छत्रपति शिवाजी जैसी फिल्मों में आ चुकी हैं।

23) गायिका, अभिनेत्री होने के साथ-साथ लताजी ने फिल्मों में संगीत भी दिया है। अधिकांश मराठी फिल्मों में उन्होंने आन्दघन नाम से संगीत दिया है।

24) वे फिल्म निर्माता रही हैं और 'लेकिन', बादल' और कांचनजंगा जैसी फिल्में बना चुकी हैं। 

25) आजा रे परदेसी (मधुमति : 1958), कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद : 1962), तुम्हीं मेरे मंदिर (खानदान : 1965) और आप मुझे अच्छे लगने लगे (जीने की राह : 1969) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने के बाद लताजी ने इस पुरस्कार को स्वीकार करना बंद कर दिया। वे चाहती थी कि नई गायिकाओं को यह पुरस्कार मिले।

26) परिचय (1972), कोरा कागज (1974) और लेकिन (1990) के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

27) वर्ष 1951 में लताजी ने सर्वाधिक 225 गीत गाए थे।

28) पुरुष गायकों में मोहम्द रफी के साथ लताजी ने सर्वाधिक 440 युगल गीत गाए। जबकि 327 किशोर के साथ। महिला युगल गीत उन्होंने सबसे ज्यादा आशा भोंसले के साथ गाए हैं।

29) लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के 686, शंकर जयकिशन के 453, आरडी बर्मन के 343 और कल्याणजी-आनंदजी के लिए लताजी  ने 303 गीत गाए हैं। 

30) गीतकारों में आनंद बक्षी द्वारा लिखे गए 700 से अधिक गीत लताजी ने गाए हैं।



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